रविवार, 20 मार्च 2016

८.६ चाण्डाल

तैलाभ्यङ्गे चिताधूमे मैथुने क्षौरकर्मणि।
तावद् भवति चाण्डालो यावत् स्नानं न चाचरेत्।।८.६।।

तेल लगाने पर , स्त्री प्रसंग करने के बाद और चिता का धुआँ लग जाने पर मनुष्य जब तक स्नान नहीं करता तब तक चाण्डाल रहता है।

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