रविवार, 20 मार्च 2016

९.१ यदि तुम मुक्त्ति चाहते हो

मुक्त्तिमिच्छसि चेत्तात ! विषयान् विषवत् त्यज।
क्षमाऽऽर्जवं दया शौचं सत्यं पीयूषवत् पिब।।९.१।।

हे भाई ! यदि तुम मुक्त्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान समझ कर त्याग दो और क्षमा , ऋजुता  (कोमलता) , दया और पवित्रता इनको अमृत की तरह पी जाओ।

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