सानन्दं सदनं सुतास्तु सुधियः कान्ता प्रियालापिनी
इच्छापूर्तिधनं स्वयोषिति रतिः स्वाज्ञापराः सेवकाः।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे
साधोः सङ्गमुपासते च सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः।।१२.१।।
आनन्द से रहने लायक घर हो , पुत्र बुद्धिमान हो , स्त्री मधुरभाषिणी हो , मनमाना धन हो , अपनी स्त्री से प्रेम हो , सेवक आज्ञाकारी हो , घर आये हुए अतिथियों को सत्कार हो , प्रतिदिन शिवजी का पूजन होता रहे और सज्जनों का साथ हो तो फिर वह गृहस्थाश्रम धन्य है।
इच्छापूर्तिधनं स्वयोषिति रतिः स्वाज्ञापराः सेवकाः।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे
साधोः सङ्गमुपासते च सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः।।१२.१।।
आनन्द से रहने लायक घर हो , पुत्र बुद्धिमान हो , स्त्री मधुरभाषिणी हो , मनमाना धन हो , अपनी स्त्री से प्रेम हो , सेवक आज्ञाकारी हो , घर आये हुए अतिथियों को सत्कार हो , प्रतिदिन शिवजी का पूजन होता रहे और सज्जनों का साथ हो तो फिर वह गृहस्थाश्रम धन्य है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें