मंगलवार, 22 मार्च 2016

१२.३ कलाकुशल मनुष्य

दाक्षिण्यं स्वजने दया परजने शाठ्यं सदा दुर्जने
प्रीतिः साधुजने स्मयः खलजने विद्वज्जने चार्जवम्।
शौर्यं शत्रुजने क्षमा गुरुजने नारीजने धूर्तता
इत्थं ये पुरुषाः कलासु कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः।।१२.३।।

जो मनुष्य अपने परिवार में कुशलता और पराये में उदारता , दुर्जनों के साथ शठता , सज्जनों से प्रेम , दुष्टों में अभिमान , विद्वानों में  कोमलता , शत्रुओं में वीरता , गुरुजनों में क्षमा और स्त्रियों में धूर्तता का व्यवहार करते हैं।  ऐसे ही कलाकुशल मनुष्य संसार में आनन्द के साथ रह सकते हैं।

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