मंगलवार, 22 मार्च 2016

१२.९ सज्जन के उत्तर

विप्राऽस्मिन्नगरे महान् कथय कस्तालद्रुमाणांगणः
को दाता रजको ददाति वसनं प्रातर्गृहीत्वा निशि।
को दक्षः परवित्तदारहरणे सर्वोऽपि दक्षो जनः
कस्माज्जीवसि  हे सखे ! विषकृमिन्यायेन जीवाम्यहम्।।१२.९।।  

कोई पथिक किसी नगर में जाकर किसी सज्जन से पूछता है - हे भाई !

इस नगर में कौन बड़ा है ?
उसने उत्तर दिया - बड़े तो ताड़ के पेड़ हैं।

दाता कौन है ?
धोबी , जो सवेरे कपड़े ले जाता और शाम को वापस दे जाता है।

यहाँ चतुर कौन है ?
पराई स्त्री और दौलत ऐंठने में यहाँ सभी चतुर हैं।

तो फिर हे सखे ! तुम यहाँ जीते कैसे हो ?
उसी तरह जीता हूँ , जैसे कि विष का कीड़ा विष में रहता हुआ भी जिन्दा रहता है।

 

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