मंगलवार, 22 मार्च 2016

१२.५ धिक्कार है

येषां श्रीमद्यशोदासुतपदकमले नास्ति भक्त्तिर्नराणां
येषामाभीरकन्याप्रियगुणकथने नानुरक्त्ता रसज्ञा।
येषां श्रीकृष्णलीलाललितरसकथा सादरौ नैव कर्णौ
धिक्त्तां धिक्त्तां धिगेतान्  कथयति सततं कीर्तनस्थो मृदङ्गः।।१२.५ ।। 

कीर्तन के समय बजता हुआ मृदंग कहता है कि , जिन मनुष्यों की श्रीकृष्ण चन्द्रजी के चरण - कमलों में भक्त्ति नहीं है , श्रीराधारानी के प्रिय गुणों के कहने में जिसकी रसना अनुरक्त्त नहीं है और श्रीकृष्ण भगवान् की लीलाओं को सुनने के लिए जिसके कान उत्सुक नहीं हैं।  ऐसे लोगों को धिक्कार है , धिक्कार है।

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