आर्तेषु विप्रेषु दयान्वितश्च यच्छ्रद्धया स्वल्पमुपैती दानम्।
अनन्तपारं समुपैति दानं यद्दीयते तन्न लभेद् द्विजेभ्यः।।१२.२।।
जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक और दयाभाव से दीन - दुखियों तथा ब्राह्मणों को थोड़ा भी दान दे देता है तो वह उसे अनन्तगुणा होकर उन दीन ब्राह्मणों से नहीं बल्कि ईश्वर के दरबार से मिलता है।
अनन्तपारं समुपैति दानं यद्दीयते तन्न लभेद् द्विजेभ्यः।।१२.२।।
जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक और दयाभाव से दीन - दुखियों तथा ब्राह्मणों को थोड़ा भी दान दे देता है तो वह उसे अनन्तगुणा होकर उन दीन ब्राह्मणों से नहीं बल्कि ईश्वर के दरबार से मिलता है।
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