मंगलवार, 22 मार्च 2016

१२.७ सत्संग

सत्सङ्गाद्  भवति हि साधुता खलानां साधूनां नहि खलसङ्गतेः खलत्वम्।
आमोदं कुसुमभवं मृदेव धत्ते मृद्गन्धं नहि कुसुमानि धारयन्ति।।१२.७।।

सत्संग के दुष्ट सज्जन हो जाते हैं।  पर सज्जन उनके संग से दुष्ट नहीं होते।  जैसे फूल की सुगंधि को मिट्टी अपनाती है , पर फूल मिट्टी की सुगन्धि को नहीं अपनाते।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें