मंगलवार, 22 मार्च 2016

१२.१० श्मशान के तुल्य

 न विप्रपादोदकपङ्कजानि न वेदशास्त्रध्वनिगर्जितानि।
स्वाहा - स्वधाकार - विवर्जितानि श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।१२.१०।।

जिस घर में ब्राह्मणों के पैर धुलने से कीचड़ नहीं होता , जिसके यहाँ वेद और शास्त्रों की ध्वनि का गर्जन नहीं होता और जिस घर में स्वाहा -  स्वधा का कभी उच्चारण नहीं होता , ऐसे घरों को श्मशान के तुल्य समझना चाहिए।

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