न विप्रपादोदकपङ्कजानि न वेदशास्त्रध्वनिगर्जितानि।
स्वाहा - स्वधाकार - विवर्जितानि श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।१२.१०।।
जिस घर में ब्राह्मणों के पैर धुलने से कीचड़ नहीं होता , जिसके यहाँ वेद और शास्त्रों की ध्वनि का गर्जन नहीं होता और जिस घर में स्वाहा - स्वधा का कभी उच्चारण नहीं होता , ऐसे घरों को श्मशान के तुल्य समझना चाहिए।
स्वाहा - स्वधाकार - विवर्जितानि श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।१२.१०।।
जिस घर में ब्राह्मणों के पैर धुलने से कीचड़ नहीं होता , जिसके यहाँ वेद और शास्त्रों की ध्वनि का गर्जन नहीं होता और जिस घर में स्वाहा - स्वधा का कभी उच्चारण नहीं होता , ऐसे घरों को श्मशान के तुल्य समझना चाहिए।
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