गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

७.७ दुर्जन से बचना

हस्ती हस्तसहस्त्रेण शतहस्तेन वाजिनः।
शृङ्गिणां दशहस्तेन देशत्यागेन दुर्जनः।।७.७।।

  1. हजार हाथ की दूरी से हाथी से ,
  2. सौ हाथ की दूरी से घोड़ा से ,
  3. दस हाथ की दूरी से सिंगवाले जानवरों से 
बचना चाहिये।

और दुर्जन से देश त्याग कर बचना चाहिये।

 

रविवार, 27 मार्च 2016

१७.२२ अनर्थ का कारण

यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता।
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम् ।।१७.२२।।

जवानी , धन की अधिकता , प्रभुता एवं अविवेक।  इनमे से एक भी अनर्थ का कारण होता है।  लेकिन जिनमे ये चारों हो उनका क्या कहना।

१७.२१ एक भी उज्ज्वलगुण

व्यालाश्रयाऽपि  विफलाऽपि सकण्टकाऽपि वक्राऽपि पङ्कसहिताऽपि दुरासदाऽपि।
गन्धेन बन्धुरसि केतकि सर्वजन्तो रेको गुणः खलु निहन्ति समस्तदोषान्।।१७.२१।।

कवि अन्योक्ति के रूप में केतकी (केवड़ा ) से कहता है - केतकी ! यद्यपि तू साँपों का घर है , तेरे में काँटे भी बहुत होते हैं , तू टेढ़ी - मेढ़ी भी है , तेरे में कीचड़ भी होता है और तू मिलती भी मुश्किल से है फिर भी तेरे में सुगन्ध है ,उसी सुगन्ध की बदौलत तू सबको प्रिय है।

कहने का तात्पर्य यह है कि , मनुष्य में चाहे कितने ही अवगुण हों पर यदि एक भी उज्ज्वलगुण उसके पास रहता है तो उसके सब दोष छूमन्तर हो जाते हैं।
 

१७.२० वृद्धा और यौवन

अधः पश्यसि किं वृद्धे पतितं तव किं भुवि।।
रे रे मुर्ख ! न जानासि गतं तारुण्यमौक्तिकम्।।१७.२०।। 

हे वृद्धे ! तुम नीचे क्या देखती हो ? क्या पृथ्वी पर तुम्हारी कोई वस्तु गिर पड़ी है ? वृद्धा उत्तर देती है - मेरा यौवनरूपी मोती खो गया है , इसलिए मैं कमर झुका कर उसे ही देख रही हूँ।


१७.१९ ये आठ प्राणी दूसरे के दुःख नहीं समझते

राजा वेश्या यमश्चाऽग्निश्चौरो बालक - याचकौ।
परदुःखं न जानन्ति अष्टमो ग्रामकण्टकः।।१७.१९।।

राजा , वेश्या , यम , अग्नि , चोर , बालक , भिखारी और ग्रामकण्टक यानी गाँववालों को दुःख देनेवाला , ये आठ प्राणी दूसरे के दुःख नहीं समझते।

 

१७.१८ मदान्ध राजा और गुणी

दानार्थिनो मधुकरा यदि कर्णतालैर्दुरीकृताः करिवरेण मदान्धबुद्धया। 
तस्यैव गण्डयुगमण्डनहानिरेषा भृङ्गाः पुनर्विकचपद्मवमे वसन्ति।।१८।।

यदि मदके मोह से पहूँचे हुए भौरों को गजराज ने अपने कानों की फड़फड़ाहट से भगा दिया तो इसमें उसीके गण्डस्थलों की शोभा नष्ट हुई। भौंरे तो वहाँ से जाकर फूले हुए कमलों के बीच में निवास करेंगे।  इसी प्रकार यदि कोई मदान्ध राजा किसी गुणी का आदर न करके उसे अपने यहाँ से निकाल देता है तो उससे उस राजा की ही हानि होती है , गुणी तो कहीं - न  - कहीं पहुँच कर अपना अड्डा जमा ही लेगा।

 

१७.१७ मनुष्य और पशु

आहार -निद्रा - भय  - मैथुनानि समानि चैतानि नृणां पशूनाम्।
ज्ञानं नराणामधिको विशेषो ज्ञानेन हीनाः पशुभिः समानाः।।१७।।

भोजन , शयन , भय और स्त्री - प्रसंग , ये बातें तो मनुष्य और पशु में समान भाव से विद्यमान रहती हैं।  मनुष्यों में केवल ज्ञान की विशेषता रहती है , वह विशेषता भी जिसमें नहीं है , उसे पशु ही समझना चाहिये।